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निकम्मे और आलसी व्यक्ति को भूख का कष्ट झेलना पड़ता है”
– चाणक्य
“उद्धयोग-धंधा करने पर निर्धनता नहीं रहती है। प्रभु नाम का जप करने वाले का पाप नष्ट हो जाता है”
– चाणक्य
“चुप रहने अर्थात सहनशीलता रखने पर लड़ाई-झगड़ा नहीं होता और जो जागता रहता है अर्थात सदैव सजग रहता है उसे कभी भय नहीं सताता”
– चाणक्य
“संसार में अत्यंत सरल और सीधा होना भी ठीक नहीं है। वन में जाकर देखो की सीधे वृक्ष ही काटे जाते है और टेढ़े-मेढे वृक्ष यों ही छोड़ दिए जाते है”
– चाणक्य
“कोयल की शोभा उसके स्वर में है, स्त्री की शोभा उसका पतिव्रत धर्म है, कुरूप व्यक्ति की शोभा उसकी विद्वता में है और तपस्वियों की शोभा क्षमा में है”
– चाणक्य
“शराबी के हाथ में थमें दूध को भी शराब ही समझा जाता है।”
– चाणक्य
“स्वर्ग से इस लोक में आने पर लोगो में चार लक्षण प्रकट होते है, दान देने की प्रवृति, मधुर वाणी, देवताओ का पूजन और ब्राह्मणों को भोजन देकर संतुष्ट करना”
– चाणक्य
“जिस सरोवर में जल रहता है, हंस वही रहते है और सूखे सरोवर को छोड़ देते है। पुरुष को ऐसे हंसो के समान नहीं होना चाहिए जो कि बार-बार स्थान बदल ले”
– चाणक्य
“रूप और यौवन से संपन्न तथा उच्च कुल में जन्म लेने वाला व्यक्ति भी यदि विद्या से रहित है, तो वह बिना सुगंध के फूल की भांति, शोभा नहीं पाता”
– चाणक्य
“मुर्ख का कोई मित्र नहीं है। धर्म के समान कोई मित्र नहीं है। धर्म ही लोक को धारण करता है”
– चाणक्य
“स्वयं को अमर मानकर धन का संग्रह करें। धनवान व्यक्ति का सारा संसार सम्मान करता है”
– चाणक्य
“आग में घी नहीं डालनी चाहिए अर्थात क्रोधी व्यक्ति को अधिक क्रोध नहीं दिलाना चाहिए”
– चाणक्य
“प्रलय काल में सागर भी अपनी मर्यादा को नष्ट कर डालते है, परन्तु साधु लोग प्रलय काल के आने पर भी अपनी मर्यादा को नष्ट नहीं होने देते”
– चाणक्य
“शत्रु के प्रयत्नों की समीक्षा करते रहना चाहिए। बलवान से युद्ध करना हाथियों से पैदल सेना को लड़ाने के समान है”
– चाणक्य
“दोष किसके कुल में नहीं है? कौन ऐसा है, जिसे दुःख ने नहीं सताया? अवगुण किसे प्राप्त नहीं हुए? सदैव सुखी कौन रहता है?”
– चाणक्य
“कन्या का विवाह अच्छे कुल में करना चाहिए। पुत्र को विध्या के साथ जोड़ना चाहिए। दुश्मन को विपत्ति में डालना चाहिए और मित्र को अच्छे कार्यो में लगाना चाहिए”
– चाणक्य
“मनुष्य का आचरण-व्यवहार उसके खानदान को बताता है, भाषण अर्थात उसकी बोली से देश का पता चलता है, विशेष आदर सत्कार से उसके प्रेम भाव का तथा उसके शरीर से भोजन का पता चलता है”
– चाणक्य
“बुरा आचरण अर्थात दुराचारी के साथ रहने से, पाप दॄष्टि रखने वाले का साथ करने से तथा अशुद्ध स्थान पर रहने वाले से मित्रता करने वाला शीघ्र नष्ट हो जाता है”
– चाणक्य
“दुर्जन और सांप सामने आने पर सांप का वरण करना उचित है, न की दुर्जन का, क्योंकि सर्प तो एक ही बार डसता है, परन्तु दुर्जन व्यक्ति कदम-कदम पर बार-बार डसता है”
– चाणक्य
“विचार अथवा मंत्रणा को गुप्त न रखने पर कार्य नष्ट हो जाता है, लापरवाही अथवा आलस्य से भेद खुल जाता है”
– चाणक्य
“वृद्धजन की सेवा ही विनय का आधार है। वृद्ध सेवा अर्थात ज्ञानियों की सेवा से ही ज्ञान प्राप्त होता है”
– चाणक्य
“पराया व्यक्ति यदि हितैषी हो तो वह भाई है। उदासीन होकर शत्रु की उपेक्षा न करें”
– चाणक्य
“मनुष्य की वाणी ही विष और अमृत की खान है। दुष्ट की मित्रता से शत्रु की मित्रता अच्छी होती है। शत्रुओं के गुणों को भी ग्रहण करना चाहिए। किसी लक्ष्य की सिद्धि में कभी भी किसी भी शत्रु का साथ न करें”
– चाणक्य
“धैर्यवान व्यक्ति अपने धैर्ये से रोगों को भी जीत लेता है”
– चाणक्य
“स्वामी द्वारा एकांत में कहे गए गुप्त रहस्यों को मुर्ख व्यक्ति प्रकट कर देते हैं”
– चाणक्य
“चुगलखोर व्यक्ति के सम्मुख कभी गोपनीय रहस्य न खोलें”
– चाणक्य
“मृत्यु भी धर्म पर चलने वाले व्यक्ति की रक्षा करती है। जहाँ पाप होता है, वहां धर्म का अपमान होता है”
– चाणक्य
“स्वयं को अमर मानकर धन का संग्रह करें। धनवान व्यक्ति का सारा संसार सम्मान करता है”
– चाणक्य
“सज्जन को बुरा आचरण नहीं करना चाहिए, दूसरों की रहस्यमयी बातों को नहीं सुनना चाहिए”
– चाणक्य
“क्षमाशील पुरुष को कभी दुःखी न करें, अर्थात क्षमा करने योग्य पुरुष को दुःखी न करें”
– चाणक्य
“ज्ञान ऐश्वर्य का फल है”
– चाणक्य
“मुर्ख व्यक्ति दान देने में दुःख का अनुभव करता है”
– चाणक्य
“विध्या अभ्यास से आती है, सुशील स्वभाव से कुल का बड़प्पन होता है। श्रेष्ठत्व की पहचान गुणों से होती है और क्रोध का पता आँखों से लगता है”
– चाणक्य
“शत्रु भी उत्साही व्यक्ति के वश में हो जाता है। उत्साहहीन व्यक्ति का भाग्य भी अंधकारमय हो जाता है। अपनी कमजोरी का प्रकाशन न करें। एक अंग का दोष भी पुरुष को दुखी करता है।”
– चाणक्य
“शत्रु हमेशा कमजोरी पर ही प्रहार करते है। हाथ में आए शत्रु पर कभी विश्वास न करें। सदाचार से शत्रु पर विजय प्राप्त की जा सकती है।”
– चाणक्य
“विकृतिप्रिय लोग नीचता का व्यवहार करते है। नीच व्यक्ति को उपदेश देना ठीक नहीं। नीच लोगों पर विश्वास नहीं करना चाहिए”
– चाणक्य
“कार्य के मध्य में अति विलम्ब और आलस्य उचित नहीं है। कार्य-सिद्धि के लिए हस्त-कौशल का उपयोग करना चाहिए।”
– चाणक्य
“नीतिवान पुरुष कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व ही देश-काल की परीक्षा कर लेते है।”
– चाणक्य
“योग्य सहायकों के बिना निर्णय करना बड़ा कठिन होता है। एक अकेला पहिया नहीं चला करता।”
– चाणक्य
“बिना विचार किये कार्य करने वालों को भाग्यलक्ष्मी त्याग देती है।”
– चाणक्य
“निर्बल राजा की आज्ञा की भी अवहेलना कदापि नहीं करनी चाहिए।”
– चाणक्य
“अग्नि में दुर्बलता नहीं होती”
– चाणक्य
“दंडनीति से राजा की प्रवति अर्थात स्वभाव का पता चलता है”
– चाणक्य
“उपाय से सभी कई कार्य पूर्ण हो जाते है। कोई भी कार्य कठिन नहीं होता। उपायों को जानने वाला कठिन कार्यों को भी सरल बना लेता है”
– चाणक्य
“बच्चों की सार्थक बातें ग्रहण करनी चाहिए”
– चाणक्य
“ज्ञानियों में भी दोष सुलभ है”
– चाणक्य
“भाग्य के विपरीत होने पर अच्छा कर्म भी दुखदायी हो जाता है। अशुभ कार्यों को नहीं करना चाहिए अर्थात गलत कार्यों को नहीं करना चाहिए”
– चाणक्य
“जो माता-पिता अपने बच्चों को नहीं पढ़ाते, वे उनके शत्रु है। ऐसे अनपढ़ बालक सभा के मध्य में उसी प्रकार शोभा नहीं पाते, जैसे हंसो के मध्य में बगुला शोभा नहीं पाता”
– चाणक्य
“ब्राह्मणों का बल विद्या है, राजाओं का बल उनकी सेना है, वेश्यो का बल उनका धन है”
– चाणक्य
“समय को समझने वाला कार्य सिद्ध करता है। समय का ज्ञान न रखने वाले राजा का कर्म समय के द्वारा ही नष्ट हो जाता है”
– चाणक्य
“अत्यधिक लाड़-प्यार से पुत्र और शिष्य गुणहीन हो जाते है, और ताड़ना से गुनी हो जाते है। भाव यही है कि शिष्य और पुत्र को यदि ताड़ना का भय रहेगा तो वे गलत मार्ग पर नहीं जायेंगे”
– चाणक्य
“नदी के किनारे खड़े वृक्ष, दूसरे के घर में गयी स्त्री, मंत्री के बिना राजा शीघ्र ही नष्ट हो जाते है। इसमें संशय नहीं करना चाहिए”
– चाणक्य
“एक श्लोक, आधा श्लोक, श्लोक का एक चरण, उसका आधा अथवा एक अक्षर ही सही या आधा अक्षर प्रतिदिन पढ़ना चाहिए”
– चाणक्य
“मनुष्य अकेला ही जन्म लेता है और अकेला ही मरता है। वह अकेला ही अपने अच्छे-बुरे कर्मो को भोगता है। वह अकेला ही नरक में जाता है और अकेला ही परम पद को पाता है”
– चाणक्य
“ब्रह्मज्ञानियो की दॄष्टि में स्वर्ग तिनके के समान है, शूरवीर की दॄष्टि में जीवन तिनके के समान है, इंद्रजीत के लिए स्त्री तिनके के समान है और जिसे किसी भी वस्तु की कामना नहीं है, उसकी दॄष्टि में यह सारा संसार क्षणभंगुर दिखाई देता है। वह तत्व ज्ञानी हो जाता है।”
– चाणक्य
“काम-वासना के समान दूसरा रोग नही, मोह के समान शत्रु नहीं, क्रोध के समान आग नहीं और ज्ञान से बढ़कर सुख नहीं”
– चाणक्य
“नीतिविदेश में विद्या ही मित्र होती है, घर में पत्नी मित्र होती है, रोगियों के लिए औषधि मित्र है और मरते हुए व्यक्ति का मित्र धर्म होता है अर्थात उसके सत्कर्म होते है”
– चाणक्य
“ब्राह्मण भोजन से संतुष्ट होते है, मोर बादलों की गर्जन से, साधु लोग दूसरों की समृद्धि देखकर और दुष्ट लोग दुसरो पर विपत्ति आई देखकर प्रसन्न होते है”
– चाणक्य
“हाथी को अंकुश से, घोड़े को चाबुक से, सींग वाले बैल को डंडे से और दुष्ट व्यक्ति को वश में करने के लिए हाथ में तलवार लेना आवश्यक है”
– चाणक्य
“अपनी स्त्री, भोजन और धन, इन तीनो में संतोष रखना चाहिए और विद्या अध्ययन, तप और दान करने-कराने में कभी संतोष नहीं करना चाहिए”
– चाणक्य
“राजा की शक्ति उसके बाहुबल में, ब्राह्मण की शक्ति उसके तत्व ज्ञान में और स्त्रियों की शक्ति उनके सौंदर्य तथा माधुर्य में होती है”
– चाणक्य
“शेर और बगुले से एक-एक, गधे से तीन, मुर्गे से चार, कौए से पांच और कुत्ते से छः गुण (मनुष्य को) सीखने चाहिए”
– चाणक्य
“वेद पांडित्य व्यर्थ है, शास्त्रों का ज्ञान व्यर्थ है, ऐसा कहने वाले स्वयं ही व्यर्थ है। उनकी ईर्ष्या और दुःख भी व्यर्थ है। वे व्यर्थ में ही दुःखी होते है, जबकि वेदों और शास्त्रों का ज्ञान व्यर्थ नहीं है”
– चाणक्य
“राजा अपनी प्रजा के द्वारा किए गए पाप को, पुरोहित राजा के पाप को, पति अपनी पत्नी के द्वारा किए गए पाप को और गुरु अपने शिष्य के पाप को भोगता है”
– चाणक्य
“जिसके पास धन है उसके अनेक मित्र होते है, उसी के अनेक बंधु-बांधव होते है, वही पुरुष कहलाता है और वही पंडित कहलाता है”
– चाणक्य
“(समय, मृत्यु) ही पंच भूतो (पृथ्वी,जल, वायु, अग्नि, आकाश) को पचाता है और सब प्राणियों का संहार भी काल ही करता है। संसार में प्रलय हो जाने पर वह सुप्तावस्था अर्थात स्वप्नवत रहता है। काल की सीमा को निश्चय ही कोई भी लांघ नहीं सकता”
– चाणक्य
“जीव स्वयं ही (नाना प्रकार के अच्छे-बुरे) कर्म करता है, उसका फल भी स्वयं ही भोगता है। वह स्वयं ही संसार की मोह-माया में फंसता है और स्वयं ही इसे त्यागता है”
– चाणक्य
“लोभी को धन से, घमंडी को हाथ जोड़कर, मूर्ख को उसके अनुसार व्यवहार से और पंडित को सच्चाई से वश में करना चाहिए”
– चाणक्य
“शेर और बगुले से एक-एक, गधे से तीन, मुर्गे से चार, कौए से पांच और कुत्ते से छः गुण (मनुष्य को) सीखने चाहिए”
– चाणक्य
“काम छोटा हो या बड़ा, उसे एक बार हाथ में लेने के बाद छोड़ना नहीं चाहिए। उसे पूरी लगन और सामर्थ्य के साथ करना चाहिए। जैसे सिंह पकड़े हुए शिकार को कदापि नहीं छोड़ता। सिंह का यह एक गुण अवश्य लेना चाहिए”
– चाणक्य
“बिना राज्य के रहना उत्तम है, परन्तु दुष्ट राजा के रहना अच्छा नहीं है। बिना मित्र के रहना अच्छा है, किन्तु दुष्ट मित्र के साथ रहना उचित नहीं है। बिना शिष्य के रहना ठीक है, परन्तु नीच शिष्य को ग्रहण करना ठीक नहीं है। बिना स्त्री के रहना उचित है, किन्तु दुष्ट और कुल्टा स्त्री के साथ रहना उचित नहीं है”
– चाणक्य
“कर्जदार पिता शत्रु है, व्यभिचारिणी माता शत्रु है, मूर्ख लड़का शत्रु है और सुन्दर स्त्री शत्रु है”
– चाणक्य
“मैथुन गुप्त स्थान में करना चाहिए, छिपकर चलना चाहिए, समय-समय पर सभी इच्छित वस्तुओं का संग्रह करना चाहिए, सभी कार्यो में सावधानी रखनी चाहिए और किसी का जल्दी विश्वास नहीं करना चाहिए। ये पांच बातें कौवे से सीखनी चाहिए”
– चाणक्य
“सफल व्यक्ति वही है जो बगुले के समान अपनी सम्पूर्ण इन्द्रियों को संयम में रखकर अपना शिकार करता है। उसी के अनुसार देश, काल और अपनी सामर्थ्य को अच्छी प्रकार से समझकर सभी कार्यो को करना चाहिए। बगुले से यह एक गुण ग्रहण करना चाहिए, अर्थात एकाग्रता के साथ अपना कार्य करे तो सफलता अवश्य प्राप्त होगी, अर्थात कार्य को करते वक्त अपना सारा ध्यान उसी कार्य की और लगाना चाहिए, तभी सफलता मिलेगी”
– चाणक्य
“अत्यंत थक जाने पर भी बोझ को ढोना, ठंडे-गर्म का विचार न करना, सदा संतोषपूर्वक विचरण करना, ये तीन बातें गधे से सीखनी चाहिए”
– चाणक्य
“ब्रह्मुहूर्त में जागना, रण में पीछे न हटना, बंधुओ में किसी वस्तु का बराबर भाग करना और स्वयं चढ़ाई करके किसी से अपने भक्ष्य को छीन लेना, ये चारो बातें मुर्गे से सीखनी चाहिए। मुर्गे में ये चारों गुण होते है। वह सुबह उठकर बांग देता है। दूसरे मुर्गे से लड़ते हुए पीछे नहीं हटता, वह अपने खाध्य को अपने चूजों के साथ बांटकर खाता है और अपनी मुर्गी को समागम में संतुष्ट रखता है”
– चाणक्य
“बहुत भोजन करने की शक्ति रखने पर भी थोड़े भोजन से ही संतुष्ट हो जाए, अच्छी नींद सोए, परन्तु जरा-से खटके पर ही जाग जाए, अपने रक्षक से प्रेम करे और शूरता दिखाए, इन छः गुणों को कुत्ते से सीखना चाहिए”
– चाणक्य
“जीवन के लिए सत्तू (जौ का भुना हुआ आटा) भी काफी होता है”
– चाणक्य
“धनवान असुंदर व्यक्ति भी सुरुपवान कहलाता है। याचक कंजूस-से-कंजूस धनवान को भी नहीं छोड़ते”
– चाणक्य
“दूसरे का धन तिनकेभर भी नहीं चुराना चाहिए। दूसरों के धन का अपहरण करने से स्वयं अपने ही धन का नाश हो जाता है”
– चाणक्य
“साधू पुरुष किसी के भी धन को अपना नहीं मानते है। दूसरे के धन अथवा वैभव का लालच नहीं करना चाहिए”
– चाणक्य
“धनविहीन महान राजा का संसार सम्मान नहीं करता। दरिद्र मनुष्य का जीवन मृत्यु के समान है”
– चाणक्य
“हर एक पर्वत में मणि नहीं होती और हर एक हाथी में मुक्तामणि नहीं होती। साधु लोग सभी जगह नहीं मिलते और हर एक वन में चंदन के वृक्ष नहीं होते”
– चाणक्य
“लोभी और कंजूस स्वामी से कुछ पाना जुगनू से आग प्राप्त करने के समान है”
– चाणक्य
“इंद्रियों के अत्यधिक प्रयोग से बुढ़ापा आना शुरू हो जाता है”
– चाणक्य
हमेसा खुश रहना दुश्मनों के दुखो का कारण बनता है और खुद का खुश रहना उनके लिए सबसे सजा है ”
– चाणक्य
“चंचल चित वाले के कार्य कभी समाप्त नहीं होते। पहले निश्चय करिए, फिर कार्य आरम्भ करिए ”
– चाणक्य
“जो तुम्हारी बात को सुनते हुए इधर-उधर देखे उस आदमी पर कभी भी विश्वास न करेनसीब के सहारे चलना अपने पैरो पर कुल्हाड़ी मारने के बराबर है और ऐसे लोगो को बर्बाद होने में वक्त भी नही लगता है ”
– चाणक्य
“एक अनपढ़ व्यक्ति का जीवन उसी तरह होता है जैसे की किसी कुत्ते की पूछ जो न ही उसके पीछे का भाग ढकती है और न ही उसे कीड़ो से बचाती है ”
– चाणक्य
“खुद का अपमान करा के जीने से तो अच्छा है मर जाना क्योकि प्राणों को त्यागने से एक ही बार कष्ट होता है पर अपमानित होकर जिंदा रहने से बार-बार कष्ट होता है ”
– चाणक्य
“सतुंलित दिमाग जैसी कोई सादगी नही,संतोष जैसा कोई सुख नही,लोभ जैसी कोई बीमारी नही और दया जैसा कोई पुण्य नही है ”
– चाणक्य
“वन की अग्नि चन्दन की लकड़ी को भी जला देती है अर्थात दुष्ट व्यक्ति किसी का भी अहित कर सकते है। संकट में केवल बुद्धि ही काम आती है। लोहे को लोहे से ही काटना चाहिए ”
– चाणक्य
“यदि माता दुष्ट है तो उसे भी त्याग देना चाहिए। ”
– चाणक्य
“जो मेहनती है वे कभी गरीब नही हो सकते है और जो लोग भगवान को हमेसा याद रखते है उनसे कोई पाप नही हो सकता है क्यूकी दिमाग से जागा हुआ व्यक्ति हमेसा निडर होता है ”
– चाणक्य
“संकट के समय हमेसा बुद्धि की ही परीक्षा होती है और बुद्धि ही हमारे काम आती है ”
– चाणक्य
“निर्बल राजा को तत्काल संधि करनी चाहिए। किसी विशेष प्रयोजन के लिए ही शत्रु मित्र बनता है। ऋण, शत्रु और रोग को समाप्त कर देना चाहिए। ”
– चाणक्य
“आपसे दूर रह कर भी दूर नही है,, और जो आपके मन मे नही है वह आपके नजदीक रहकर भी दूर है ”
– चाणक्य
“दुश्मन द्वारा अगर मधुर व्यवहार किया जाये तो उसे दोष मुक्त नही समझना चाहिए ”
– चाणक्य
“दण्ड का डर नहीं होने से लोग गलत कार्य करने लग जाते है ”
– चाणक्य
“बहुत से गुणो के होने के बाद भी सिर्फ एक दोष सब कुछ नष्ट कर सकता है
चंचल चित वाले के कार्य कभी समाप्त नहीं होते। पहले निश्चय करिए, फिर कार्य आरम्भ करिए। ”
– चाणक्य
“अगर कुबेर भी अपनी आय से ज्यादा खर्च करने लगे तो वह भी कंगाल हो जायेगा ”
– चाणक्य
“कल के मोर से आज का कबूतर भला अर्थात संतोष सब से बड़ा धन है। ”
– चाणक्य
“भाग्य उनका साथ देता है जो कठिन परिस्थितयो का सामना करके भी अपने लक्ष्य के प्रति ढृढ रहते है ”
– चाणक्य
“बहुत से गुणो के होने के बाद भी सिर्फ एक दोष सब कुछ नष्ट कर सकता है ”
– चाणक्य
“सांप को दूध पिलाने से विष ही बढ़ता है, न की अमृत। ”
– चाणक्य
“बुद्धि से पैसा कमाया जा सकता है,पैसे से बुद्धि नहीं ”
– चाणक्य
“दुश्मन द्वारा अगर मधुर व्यवहार किया जाये तो उसे दोष मुक्त नही समझना चाहिए ”
– चाणक्य
“सिंह भूखा होने पर भी तिनका नहीं खाता। ”
– चाणक्य
“आलसी का न वर्तमान है, और न ही भविष्य। ”
– चाणक्य
“कोई भी व्यक्ति ऊँचे स्थान पर बैठकर ऊँचा नहीं हो जाता बल्कि हमेशा अपने गुणों से ऊँचा होता है ”
– चाणक्य
“मनुष्य स्वयं ही अपने कर्मो के दवारा जीवन मे दुःख को बुलाता है ”
– चाणक्य
“शत्रु की दुर्बलता जानने तक उसे अपना मित्र बनाए रखें। ”
– चाणक्य
“दूसरो की गलतियो से सीखो अपने ही ऊपर प्रयोग करके सीखने पर तुम्हारी आयु कम पड़ जायेंगी ”
– चाणक्य
“एक बिगडैल गाय सौ कुत्तों से भी ज्यादा श्रेष्ठ है अर्थात एक विपरीत स्वभाव का परम हितैषी व्यक्ति, उन सौ से श्रेष्ठ है जो आपकी चापलूसी करते हैं| ”
– चाणक्य
“उस स्थान पर एक पल भी नही ठहरना चाहिए जहा आपकी इज्जत न हो, जहा आप अपनी जीविका नही चला सकते है जहा आपका कोई दोस्त नही हो और ऐसे जगह जहा ज्ञान की तनिक भी बाते न हो ”
– चाणक्य
“शिक्षा ही हमारा सबसे परम मित्र है शिक्षित व्यक्ति हर जगह सम्मान पाता है ”
– चाणक्य
“फूलो की सुगंध हवा से केवल उसी दिशा में महकती है जिस दिशा में हवा चल रही होती है जबकि इन्सान के अच्छे गुणों की महक चारो दिशाओ में फैलती है ”
– चाणक्य
“मन से सोचे हुए काम किसी के सामने जाहिर करना खुद को लोगो के सामने हंसी का पात्र बनने के बराबर है यदि मन में ठान लिया है तो उसे मन में ही रखते हुए पूरे मन से करने में लग जाना ही बेहतर है ”
– चाणक्य
“जो व्यक्ति शक्ति न होने पर मन में हार नहीं मानता उसे संसार की कोई भी ताकत परास्त नहीं कर सकती ”
– चाणक्य
“सभी प्रकार के डरो में सबसे बड़ा डर बदनामी का होता है ”
– चाणक्य
“ किसी भी अवस्था में सबसे पहले माँ को भोजन कराना चाहियें ”
– चाणक्य
“बुद्धिमान व्यक्ति का कोई दुश्मन नहीं होता.कोई सारा जंगल जैसे एक सुगंध भरे वृक्ष से महक जाता है उसी तरह एक गुणवान पुत्र से सारे कुल का नाम बढता है ”
– चाणक्य
“किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए शत्रु का साथ कभी नही लेना चाहिए वरना जीवन भर उसके आगे झुकना पड़ सकता है ”
– चाणक्य
“अपने गहरे राज किसी से प्रकट नही करना चाहिए क्यूकी वक्त आने पर हमारे यही राज वे दुसरे के सामने खोल सकते है ”
– चाणक्य
“ऐसे लोगो की मदद करना व्यर्थ के समान है जो हमेसा नकरात्मक भावो से भरे होते है क्यूकी ऐसे लोग प्रयास छोड़ खुद को या तो आपको या फिर परिस्थिति को दोषी मानकर उदास हो जाते है और लक्ष्य से भटक जाते है ”
– चाणक्य
“जिसे समय का ध्यान नही रहता है यह व्यक्ति कभी भी अपने जीवन के प्रति सचेत नही हो सकता है ”
– चाणक्य
“किसी भी कार्य को करने से पहले खुद से ये 3 प्रश्न जरुर पूछे – 1 मै यह क्यों कर रहा हु, 2 –इसका क्या परिणाम होगा 3- क्या मै इसमें सफल हो जाऊंगा. अगर सोचने पर आपके प्रश्नों के उत्तर मिल जाए तो समझिये आप सही दिशा में जा रहे है ”
– चाणक्य
“मुर्ख लोगो से वाद-विवाद नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से हम अपना ही समय नष्ट करते है ”
– चाणक्य
“मित्रता हमेसा बराबर वालो से ही करना चाहिए अधिक धनी या निर्धन व्यक्ति से मित्रता कर लेने पर कभी कभी भरपाई करनी पड़ती है जो कभी भी सुख नही देती है ”
– चाणक्य
“डर को नजदीक न आने दो अगर यह नजदीक आ जाय तो इस पर हमला कर दो ”
– चाणक्य
“धूर्त और कपटी व्यक्ति हमेसा हमे स्वार्थ के लिए ही दुसरे की सेवा करते है अतः इनसे हमेसा बचके ही रहना चाहिए ”
– चाणक्य
“भगवान मूर्तियो मे नही बसता बल्कि आपकी अनुभूति ही आपका ईश्वर है और आत्मा आपका मंदिर ”
– चाणक्य
“ सिंह भूखा होने पर भी तिनका नहीं खाता। ”
– चाणक्य
“सांप को दूध पिलाने से विष ही बढ़ता है, न की अमृत।“बुरे ग्राम का वास, झगड़ालू स्त्री, नीच कुल की सेवा, बुरा भोजन, मूर्ख लड़का, विधवा कन्या, ये छः बिना अग्नि के भी शरीर को जला देते है।”
– चाणक्य
“पुत्र वे है जो पिता भक्त है। पिता वही है जो बच्चों का पालन-पोषण करता है। मित्र वही है जिसमे पूर्ण विश्वास हो और स्त्री वही है जिससे परिवार में सुख-शांति व्याप्त हो।”
– चाणक्य
“जो मित्र प्रत्यक्ष रूप से मधुर वचन बोलता हो और पीठ पीछे अर्थात अप्रत्यक्ष रूप से आपके सारे कार्यो में रोड़ा अटकाता हो, ऐसे मित्र को उस घड़े के समान त्याग देना चाहिए जिसके भीतर विष भरा हो और ऊपर मुंह के पास दूध भरा हो।”
– चाणक्य
“निश्चित रूप से मूर्खता दुःखदायी है और यौवन भी दुःख देने वाला है परंतु कष्टो से भी बड़ा कष्ट दूसरे के घर पर रहना है।”
– चाणक्य
“विद्या ही निर्धन का धन होता है और यह ऐसा धन है जिसे कभी चुराया नही जा सकता है और इसे बाटने पर हमेसा बढ़ता ही हैअच्छे आचरण से दुखो से मुक्ति मिलती है विवेक से अज्ञानता को मिटाया जा सकता है और जानकारी से भय को दूर किया जा सकता हैजो कोई प्रतिदिन पूरे संवत-भर मौन रहकर भोजन करते है, वे हजारों-करोड़ो युगों तक स्वर्ग में पूजे जाते है।”
– चाणक्य
“जो व्यक्ति एक बार के भोजन से संतुष्ट हो जाता है, छः कर्मो (यज्ञ करना, यज्ञ कराना, पढ़ना, पढ़ाना, दान देना, दान लेना) में लगा रहता है और अपनी स्त्री से ऋतुकाल (मासिक धर्म) के बाद ही प्रसंग करता है, वही ब्राह्मण कहलाने का सच्चा अधिकारी है।”
– चाणक्य
“देवता का धन, गुरु का धन, दूसरे की स्त्री के साथ प्रसंग (संभोग) करने वाला और सभी जीवों में निर्वाह करने अर्थात सबका अन्न खाने वाला ब्राह्मण चांडाल कहलाता है।”
– चाणक्य
“उस गाय से क्या लाभ, जो न बच्चा जने और न ही दूध दे। ऐसे पुत्र के जन्म लेने से क्या लाभ, जो न तो विद्वान हो, न किसी देवता का भक्त हो।- चाणक्यजिस प्रकार नीम के वृक्ष की जड़ को दूध और घी से सीचने के उपरांत भी वह अपनी कड़वाहट छोड़कर मृदुल नहीं हो जाता, ठीक इसी के अनुरूप दुष्ट प्रवृतियों वाले मनुष्यों पर सदुपदेशों का कोई भी असर नहीं होता।”
– चाणक्य
“घर-गृहस्थी में आसक्त व्यक्ति को विद्या नहीं आती। मांस खाने वाले को दया नहीं आती। धन के लालची को सच बोलना नहीं आता और स्त्री में आसक्त कामुक व्यक्ति में पवित्रता नहीं होती।”
– चाणक्य
“जिस प्रकार शराब वाला पात्र अग्नि में तपाए जाने पर भी शुद्ध नहीं हो सकता, उसी प्रकार जिस मनुष्य के ह्रदय में पाप और कुटिलता भरी होती है, सैकड़ों तीर्थ स्थानो पर स्नान करने से भी ऐसे मनुष्य पवित्र नहीं हो सकते।”
– चाणक्य
“हाथी मोटे शरीर वाला है, परन्तु अंकुश से वश में रहता है। क्या अंकुश हाथी के बराबर है ? दीपक के जलने पर अंधकार नष्ट हो जाता है। क्या अंधकार दीपक बराबर है ? वज्र से बड़े-बड़े पर्वत शिखर टूटकर गिर जाते है। क्या वज्र पर्वतों के समान है ? सत्यता यह है कि जिसका तेज चमकता रहता है, वही बलवान है। मोटेपन से बल का अहसास नहीं होता।”
– चाणक्य
“दान देने का स्वभाव, मधुर वाणी, धैर्य और उचित की पहचान, ये चार बातें अभ्यास से नहीं आती, ये मनुष्य के स्वाभाविक गुण है। ईश्वर के द्वारा ही ये गुण प्राप्त होते है। जो व्यक्ति इन गुणों का उपयोग नहीं करता, वह ईश्वर के द्वारा दिए गए वरदान की उपेक्षा ही करता है और दुर्गुणों को अपनाकर घोर कष्ट भोगता है।”
– चाणक्य
“अपनी आत्मा से द्वेष करने से मनुष्य की मृत्यु हो जाती है—-दुसरो से अर्थात शत्रु से द्वेष के कारण धन का नाश और राजा से द्वेष करने से अपना सर्वनाश हो जाता है, किन्तु ब्राह्मण से द्वेष करने से सम्पूर्ण कुल ही का नाश हो जाता है।”
– चाणक्य
“बुद्धिहीन व्यक्ति को अच्छे कुल में जन्म लेने वाली कुरूप कन्या से भी विवाह कर लेना चाहिए, परन्तु अच्छे रूप वाली नीच कुल की कन्या से विवाह नहीं करना चाहिए क्योंकि विवाह संबंध समान कुल में ही श्रेष्ठ होता है।”
– चाणक्य
“लम्बे नाख़ून वाले हिंसक पशुओं, नदियों, बड़े-बड़े सींग वाले पशुओ, शस्त्रधारियों, स्त्रियों और राज परिवारो का कभी विश्वास नहीं करना चाहिए।”
– चाणक्य
“पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों का भोजन दुगना, लज्जा चौगुनी, साहस छः गुना और काम (सेक्स की इच्छा) आठ गुना अधिक होता है।”
– चाणक्य
“जिसका पुत्र आज्ञाकारी हो, स्त्री उसके अनुसार चलने वाली हो, अर्थात पतिव्रता हो, जो अपने पास धन से संतुष्ट रहता हो, उसका स्वर्ग यहीं पर है।”
– चाणक्य
“झूठ बोलना, उतावलापन दिखाना, छल-कपट, मूर्खता, अत्यधिक लालच करना, अशुद्धता और दयाहीनता, ये सभी प्रकार के दोष स्त्रियों में स्वाभाविक रूप से मिलते है। ”
– चाणक्य
“जो बुद्धिमान है, वही बलवान है, बुद्धिहीन के पास शक्ति नहीं होती। जैसे जंगले में सबसे अधिक बलवान होने पर भी सिंह मतवाला खरगोश के द्वारा मारा जाता है।”
– चाणक्य
“अति सुंदर होने के कारण सीता का हरण हुआ, अत्यंत अहंकार के कारण रावण मारा गया, अत्यधिक दान के कारण राजा बलि बांधा गया। अतः सभी के लिए अति ठीक नहीं है। ‘अति सर्वथा वर्जयते।’ अति को सदैव छोड़ देना चाहिए।”
– चाणक्य
“एक ही माता के पेट से और एक ही नक्षत्र में जन्म लेने वाली संतान समान गुण और शील वाली नहीं होती, जैसे बेर के कांटे।”
– चाणक्य
“बहुत बड़ी आयु वाले मूर्ख पुत्र की अपेक्षा पैदा होते ही जो मर गया, वह अच्छा है क्योंकि मरा हुआ पुत्र कुछ देर के लिए ही कष्ट देता है, परन्तु मूर्ख पुत्र जीवनभर जलाता है।”
– चाणक्य
“मूर्ख छात्रों को पढ़ाने तथा दुष्ट स्त्री के पालन पोषण से और दुखियों के साथ संबंध रखने से, बुद्धिमान व्यक्ति भी दुःखी होता है। तात्पर्य यह कि मूर्ख शिष्य को कभी भी उपदेश नहीं देना चाहिए, पतित आचरण करने वाली स्त्री की संगति करना तथा दुःखी मनुष्यो के साथ समागम करने से विद्वान तथा भले व्यक्ति को दुःख ही उठाना पड़ता है।”
– चाणक्य
“ नीतिजिस प्रकार घिसने, काटने, आग में तापने-पीटने, इन चार उपायो से सोने की परख की जाती है, वैसे ही त्याग, शील, गुण और कर्म, इन चारों से मनुष्य की पहचान होती है।”
– चाणक्य
“यदि भगवान जगत के पालनकर्ता है तो हमें जीने की क्या चिंता है? यदि वे रक्षक न होते तो माता के स्तनों से दूध क्यों निकलता? यही बार-बार सोचकर हे लक्ष्मीपति ! अर्थात विष्णु ! मै आपके चरण-कमल में सेवा हेतु समय व्यतीत करना चाहता हूं।”
– चाणक्य
“साग खाने से रोग बढ़ते है, दूध से शरीर बलवान होता है, घी से वीर्य (शक्ति) बढ़ता है और मांस खाने से मांस ही बढ़ता है।”
– चाणक्य
“अन्न की अपेक्षा उसके चूर्ण अर्थात पिसे हुए आटे में दस गुना अधिक शक्ति होती है। दूध में आटे से भी दस गुना अधिक शक्ति होती है। मांस में दूध से भी आठ गुना अधिक शक्ति होती है। और घी में मांस से भी दस गुना अधिक बल है।”
– चाणक्य
“जो कोई प्रतिदिन पूरे संवत-भर मौन रहकर भोजन करते है, वे हजारों-करोड़ो युगों तक स्वर्ग में पूजे जाते है।”
– चाणक्य
“दरिद्रता के समय धैर्य रखना उत्तम है, मैले कपड़ों को साफ रखना उत्तम है, घटिया अन्न का बना गर्म भोजन अच्छा लगता है और कुरूप व्यक्ति के लिए अच्छे स्वभाव का होना श्रेष्ठ है।”
– चाणक्य
“विदयार्थी को यदि सुख की इच्छा है और वह परिश्रम करना नहीं चाहता तो उसे विदया प्राप्त करने की इच्छा का त्याग कर देना चाहिए। यदि वह विदया चाहता है तो उसे सुख-सुविधाओं का त्याग करना होगा क्योंकि सुख चाहने वाला विदया प्राप्त नहीं कर सकता। दूसरी ओर विदया प्राप्त करने वालो को आराम नहीं मिल सकता।”
– चाणक्य
“जो अपने निश्चित कर्मों अथवा वास्तु का त्याग करके, अनिश्चित की चिंता करता है, उसका अनिश्चित लक्ष्य तो नष्ट होता ही है, निश्चित भी नष्ट हो जाता है।”
– चाणक्य
“जिस देश में सम्मान नहीं, आजीविका के साधन नहीं, बन्धु-बांधव अर्थात परिवार नहीं और विद्या प्राप्त करने के साधन नहीं, वहां कभी नहीं रहना चाहिए।”
– चाणक्य
“ नीतिबीमारी में, विपत्तिकाल में,अकाल के समय, दुश्मनो से दुःख पाने या आक्रमण होने पर, राजदरबार में और श्मशान-भूमि में जो साथ रहता है, वही सच्चा भाई अथवा बंधु है।”
– चाणक्य
“ नौकरों को बाहर भेजने पर, भाई-बंधुओ को संकट के समय तथा दोस्त को विपत्ति में और अपनी स्त्री को धन के नष्ट हो जाने पर परखना चाहिए, अर्थात उनकी परीक्षा करनी चाहिए।”
– चाणक्य
“दुष्ट स्त्री, छल करने वाला मित्र, पलटकर कर तीखा जवाब देने वाला नौकर तथा जिस घर में सांप रहता हो, उस घर में निवास करने वाले गृहस्वामी की मौत में संशय न करे। वह निश्चित मृत्यु को प्राप्त होता है।”
– चाणक्य
“ नीतिजिसके पास न विध्या है, न तप है, न दान है और न धर्म है, वह इस मृत्यु लोक में पृथ्वी पर भार स्वरूप मनुष्य रूपी मृगों के समान घूम रहा है। वास्तव में ऐसे व्यक्ति का जीवन व्यर्थ है। वह समाज के किसी काम का नहीं है।”
– चाणक्य
“जिनको स्वयं बुद्धि नहीं है, शास्त्र उनके लिए क्या कर सकता है? जैसे अंधे के लिए दर्पण का क्या महत्व है ?”
– चाणक्य
“तपस्या अकेले में, अध्ययन दो के साथ, गाना तीन के साथ, यात्रा चार के साथ, खेती पांच के साथ और युद्ध बहुत से सहायको के साथ होने पर ही उत्तम होता है।”
– चाणक्य
“यह नश्वर शरीर जब तक निरोग व स्वस्थ है या जब तक मृत्यु नहीं आती, तब तक मनुष्य को अपने सभी पुण्य-कर्म कर लेने चाहिए क्योँकि अंत समय आने पर वह क्या कर पाएगा।”
– चाणक्य
“जहां मूर्खो का सम्मान नहीं होता, जहां अन्न भंडार सुरक्षित रहता है, जहां पति-पत्नी में कभी झगड़ा नहीं होता, वहां लक्ष्मी बिना बुलाए ही निवास करती है और उन्हें किसी प्रकार की कमी नहीं रहती।”
– चाणक्य
“पुत्र से पांच वर्ष तक प्यार करना चाहिए। उसके बाद दस वर्ष तक अर्थात पंद्रह वर्ष की आयु तक उसे दंड आदि देते हुए अच्छे कार्य की और लगाना चाहिए। सोलहवां साल आने पर मित्र जैसा व्यवहार करना चाहिए। संसार में जो कुछ भी भला-बुरा है, उसका उसे ज्ञान कराना चाहिए।”
– चाणक्य
“विध्या कामधेनु के समान सभी इच्छाए पूर्ण करने वाली है। विध्या से सभी फल समय पर प्राप्त होते है। परदेस में विध्या माता के समान रक्षा करती है। विद्वानो ने विध्या को गुप्त धन कहा है, अर्थात विध्या वह धन है जो आपातकाल में काम आती है। इसका न तो हरण किया जा सकता हे न ही इसे चुराया जा सकता है।”
– चाणक्य
“स्त्रियों का गुरु पति है। अतिथि सबका गुरु है। ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य का गुरु अग्नि है तथा चारों वर्णो का गुरु ब्राह्मण है। ”
– चाणक्य
“दयाहीन धर्म को छोड़ दो, विध्या हीन गुरु को छोड़ दो, झगड़ालू और क्रोधी स्त्री को छोड़ दो और स्नेहविहीन बंधु-बान्धवो को छोड़ दो।”
– चाणक्य
“पत्नी वही है जो पवित्र और चतुर है, पतिव्रता है, पत्नी वही है जिस पर पति का प्रेम है, पत्नी वही है जो सदैव सत्य बोलती है।”
– चाणक्य
“बहुत ज्यादा पैदल चलना मनुष्यों को बुढ़ापा ला देता है, घोड़ो को एक ही स्थान पर बांधे रखना और स्त्रियों के साथ पुरुष का समागम न होना और वस्त्रों को लगातार धुप में डाले रखने से बुढ़ापा आ जाता है।”
– चाणक्य
“राजा की पत्नी, गुरु की स्त्री, मित्र की पत्नी, पत्नी की माता (सास) और अपनी जननी, ये पांच माताएं मानी गई है। इनके साथ मातृवत् व्यवहार ही करना चाहिए।”
– चाणक्य
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