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“ आत्मा को शास्त्र नहीं काट सकते, अग्नि नहीं जला सकती, जल नहीं गाला सकता, वायु नहीं सूखा सकती ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ इस जीवन में ना कुछ खोता है ना व्यर्थ होता है ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ क्रोध से भ्रम पैदा होता है. भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है. जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ जो इस लोक में अपने काम की सफलता की कामना रखते हैं वे देवताओं का पूजन करें ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ जो कार्य में निष्क्रियता और निष्क्रियता में कार्य देखता है वह एक बुद्धिमान व्यक्ति है ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ ज्ञानी व्यक्ति को कर्म के प्रतिफल की अपेक्षा कर रहे अज्ञानी व्यक्ति के दीमाग को अस्थिर नहीं करना चाहिए. ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप में देखता है, वही सही मायने में देखता है ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ तुम खुद अपने मित्र हो और खुद ही अपने शत्रु ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ बुरे कर्म करने वाले, सबसे नीच व्यक्ति जो राक्षसी प्रवित्तियों से जुड़े हुए हैं, और जिनकी बुद्धि माया ने हर ली है वो मेरी पूजा या मुझे पाने का प्रयास नहीं करते ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ मेरे लिए ना कोई घृणित है ना प्रिय.किन्तु जो व्यक्ति भक्ति के साथ मेरी पूजा करते हैं , वो मेरे साथ हैं और मैं भी उनके साथ हूँ ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ मैं ऊष्मा देता हूँ, मैं वर्षा करता हूँ और रोकता भी हूँ, मैं अमरत्व भी हूँ और मृत्यु भी ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ मैं उन्हें ज्ञान देता हूँ जो सदा मुझसे जुड़े रहते हैं और जो मुझसे प्रेम करते हैं ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ मैं सभी प्राणियों को सामान रूप से देखता हूँ; ना कोई मुझे कम प्रिय है ना अधिक. लेकिन जो मेरी प्रेमपूर्वक आराधना करते हैं वो मेरे भीतर रहते हैं और मैं उनके जीवन में आता हूँ ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ हे अर्जुन !, मैं भूत, वर्तमान और भविष्य के सभी प्राणियों को जानता हूँ, किन्तु वास्तविकता में कोई मुझे नहीं जानता ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ : उससे मत डरो जो वास्तविक नहीं है, ना कभी था ना कभी होगा.जो वास्तविक है, वो हमेशा था और उसे कभी नष्ट नहीं किया जा सकता ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ अच्छे कर्म करने के बावजूद भी लोग केवल आपकी बुराइयाँ ही याद रखेंगे. इसलिए लोग क्या कहते है इस पर ध्यान मत दो. अपने कार्य करते रहो ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ अपने आपको भगवान् के प्रति समर्पित कर दो. यही सबसे बड़ा सहारा है. जो कोई भी इस सहारे को पहचान गया है वह डर, चिंता और दुखो से आजाद रहता है ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ अहम् भाव ही मनुष्य में भिन्नता करने वाला है, अहम् भाव न रहने से परमात्मा के साथ भिन्नता का कोई कारण ही नहीं है ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ इंसान जन्म से नहीं बल्कि अपने कर्मो से महान बनता है.-------पूर्णता के साथ किसी और के जीवन की नकल कर जीने की तुलना में अपने आप को पहचानकर अपूर्ण रूप से जीना बेहतर है।” ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ उत्पन्न होने वाली वस्तु तो स्वतः ही मिटती है, जो वस्तु उत्पन्न नहीं होती वह कभी नहीं मिटती |आत्मा अजर अमर है | शरीर नाशवान है | ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ ऐसा कुछ भी नहीं , चेतन या अचेतन , जो मेरे बिना अस्तित्व में रह सकता हो. ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ कर्म मुझे बांध नहीं सकता क्यों की मेरी कर्म के फल में आसक्ति नहीं है ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ काम कोर्ध और लोभ नर्क के तीन द्धार (Dwar) है. ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ किसी और का काम पूर्णता से करने से कहीं अच्छा है कि अपना काम करें, भले ही उसे अपूर्णता से करना पड़े ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ जन्म लेने वाले के लिए मृत्यु उतनी ही निश्चित है जितना कि मृत होने वाले के लिए जन्म लेना. इसलिए जो अपरिहार्य है उस पर शोक मत करो ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ जिसके लिए सुख दुःख, मान अपमान सामान है वही सिद्ध पुरुष है.-------------- भय का आभाव, अनन्तःकरण की निर्मलता, तत्ज्ञान के लिए ध्यानयोग में स्थिति, दान, गुरुजन की पूजा, पठन पाठन, अपने धर्म के पालन के लिए कष्ट सहना ये दैवीय सम्प्रदा के लक्षण है . ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ जीवन न तो भविष्य में है न अतीत मैं, जीवन तो बस इस पल मैं है ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ जो कोई भी जिस किसी भी देवता की पूजा विश्वास के साथ करने की इच्छा रखता है, मैं उसका विश्वास उसी देवता में दृढ कर देता हूँ ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ जो अपने मन को नियंत्रित नहीं करते उनका मन ही उनका सबसे बड़ा शत्रु है ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ जो इंसान ज्ञान और कर्म को एक सामान देखता है, सिर्फ उसी व्यक्ति का नजरिया सही है.’ ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ जो भी नए कर्म और उनके संस्कार बनते है वह सब केवल मनुष्य जन्म में ही बनते है, पशु पक्षी आदि योनियों में नहीं, क्यों की वह योनियां कर्मफल भोगने के लिए ही मिलती हैं ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ जो मन को नियंत्रित नहीं करते उनके लिए वह शत्रु के समान कार्य करता है ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ जो होने वाला है वो होकर ही रहता है और जो नहीं होने वाला वह कभी नहीं होता . ऐसा निश्चय जिनकी बुद्धि में होता है उन्हें चिंता कभी नहीं सताती . ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ तुम क्यों व्यर्थ में चिंता करते है? तुम क्यों भयभीत होते हो? कौन तुम्हे मार सकता है? आत्मा न कभी जन्म लेती है और न ही इसे कोई मार सकता है. ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ तुम्हारे पास अपना क्या है जिसे तुम खो दोगे? तुम क्या अपने साथ लाये थे? हर कोई खाली हाथ आया है और खाली हाथ जाएगा ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ दम्भ, अहंकार, घमंड, क्रोध अज्ञान ये आसुरी सम्प्रदा के लक्षण है--------------------------दैवीय सम्प्रदा मुक्ति की तरफ और आसुरी सम्प्रदा नार्को की और ले जाने वाली है ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ दैवीय सम्प्रदा से युक्त पुरुष में भय का सर्वथा आभाव और सबके प्रति प्रेम का भाव होता है | ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ न तो यह शरीर तुम्हारा है और न तो तुम इस शरीर के मालिक हो. यह शरीर 5 तत्वों से बना है – आग, जल, वायु पृथ्वी और आकाश. एक दिन यह शरीर इन्ही 5 तत्वों में विलीन हो जाएगा ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ निद्रा, भय, चिंता, दुःख, घमंड आदि दोष तो रहेंगे ही, दूर हो ही नहीं सकते ऐसा मानने वाले मनुष्य कायर है ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ निर्माण केवल पहले से मौजूद चीजों का प्रक्षेपण है. --------------- : व्यक्ति जो चाहे बन सकता है यदी वह विश्वास के साथ इच्छित वस्तु पर लगातार चिंतन करे ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ प्रत्येक कर्म को कर्त्तव्य मात्रा समझकर करना चाहिए . स्वरुप से कर्मो का त्याग करने से तो बंधन होता है पर सम्बन्ध न जोड़कर कर्त्तव्य मात्रा समझ कर कर्म करने से मुक्ति होती है | ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ प्रबुद्ध व्यक्ति के लिए, गंदगी का ढेर, पत्थर, और सोना सभी समान हैं ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ बाहर का त्याग वास्तव में त्याग नहीं है, भीतर का त्याग ही त्याग है .हमारी कामना, ममता, आसक्ति ही बढ़ने वाले है, संसार नहीं ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ भगवन अर्जुन से कहते है – तेरा कर्म करने पर अधिकार है कर्म के फल पर नहीं इसलिए तू कर्म के फल की चिंता मत कर और तेरा कर्म न करने में भी आसक्ति न हो ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ भगवान प्रत्येक वस्तु में है और सबके ऊपर भी.---------- बुद्धिमान व्यक्ति कामुक सुख में आनंद नहीं लेता.- ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ भय, राग द्वेष और आसक्ति से रहित मनुष्य ही इस लोक और परलोक में सुख पाते है ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ मन अशांत है और उसे नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ मन की गतिविधियों, होश, श्वास, और भावनाओं के माध्यम से भगवान की शक्ति सदा तुम्हारे साथ है; और लगातार तुम्हे बस एक साधन की तरह प्रयोग कर के सभी कार्य कर रही है ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ मनुष्य अपनी वासना के अनुसार ही अगला जन्म पाता है ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है.जैसा वो विश्वास करता है वैसा वो बन जाता है ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ मनुष्य संप्रदाय दो ही तरह के है एक दैवीय सम्प्रदा वाले एक आसुरी सम्प्रदा वाले ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ मैं केवल भगवान् का हूँ और भगवान मेरे है ऐसा मानने मात्रा से भगवान् से सम्बन्ध जुड़ जाता है ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ मैं धरती की मधुर सुगंध हूँ. मैं अग्नि की ऊष्मा हूँ, सभी जीवित प्राणियों का जीवन और सन्यासियों का आत्मसंयम हूँ ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ यह संसार हर छड़ बदल रहा है और बदलने वाली वस्तु असत्य होती है ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ लोग आपके अपमान के बारे में हमेशा बात करेंगे. सम्मानित व्यक्ति के लिए, अपमान मृत्यु से भी बदतर है ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ वह जो इस ज्ञान में विश्वास नहीं रखते, मुझे प्राप्त किये बिना जन्म और मृत्यु के चक्र का अनुगमन करते हैं ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ वह जो मृत्यु के समय मुझे स्मरण करते हुए अपना शरीर त्यागता है, वह मेरे धाम को प्राप्त होता है. इसमें कोई शंशय नहीं है ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ शास्त्र, वर्ण, आश्रम की मर्यादा के अनुसार जो काम किया जाता है वह ” कार्य ” है और शास्त्र आदि की मर्यादा से विरुद्ध जो काम किया जाता है वह ” अकार्य ” है ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ संसार के सयोग में जो सुख प्रतीत होता है, उसमे दुःख भी मिला रहता है .परन्तु संसार के वियोग से सुख दुःख से अखंड आनंद प्राप्त होता है ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ सज्जन पुरुष अच्छे आचरण वाले सज्जन पुरुषो में, नीच पुरुष नीच लोगो में ही रहना चाहते है स्वाभाव से पैदा हुई जिसकी जैसी प्रकृति है उस प्रकृति को कोई नहीं छोड़ता ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता ना इस लोक में है ना ही कहीं और ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ सभी अच्छे काम छोड़ कर बस भगवान में पूर्ण रूप से समर्पित हो जाओ. मैं तुम्हे सभी पापों से मुक्त कर दूंगा. शोक मत करो ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ समय से पहले और भाग्य से अधिक किसी को कुछ नहीं मिलता ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ साधारण मनुष्य शरीर को व्यापक मानता है, साधक परमात्मा को व्यापक मानता है जैसे शरीर और संसार एक है ऐसे ही स्वयं और परमात्मा एक है | ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ हर व्यक्ति का विश्वास उसकी प्रकृति के अनुसार होता है ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ हे अर्जुन ! हम दोनों ने कई जन्म लिए हैं, मुझे याद हैं, लेकिन तुम्हे नहीं ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ हे अर्जुन तू युद्ध भी कर और हर समय में मेरा स्मरण भी कर ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ हे अर्जुन, केवल भाग्यशाली योद्धा ही ऐसा युद्ध लड़ने का अवसर पाते हैं जो स्वर्ग के द्वार के सामान है ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ हे पार्थ तू फल की चिंता मत कर अपना कर्त्तव्य कर्म कर ”
– भगवान श्री कृष्ण
“ “मैं करता हूँ ” ऐसा भाव उत्पन्न होता है इसको ही ” अहंकार ” कहते है ”
– भगवान श्री कृष्ण
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